विटामिन डी(Vitamin D)

विटामिन डी का इतिहास

बहुत समय पहले या प्रथम युद्ध के समय एक वैज्ञानिक ने कुछ बच्चों को मछली का तेल देकर उनका रिकेट्सिया रोग से बचाव किया था या किस खाने की कमी से होता है इसे जानने के अनेक प्रकार के प्रयोग किए गए कुत्तों में प्रयोग किया गया तो ज्ञात हुआ कि बसा में घुलने वाले कई पदार्थ हैं जिसमें कुत्तों का हड्डियों का कंकाल प्रभावित होता है सन 1922 में वैज्ञानिक मैकुलम ने पाया कि यह अधिकार लिवर आयल का ऑक्सीकरण करके विटामिन ए को अलग करके यह देखा कि उसमें कोई तत्व है जो कि रिकेट्सिया को ठीक कर रहा है तो उस एरिया का नाम दिया गया और तमाम प्रयोगों द्वारा या अभी जाना गया कि स्ट्रॉल तेलों धूप में रखने से उनमें विकेट प्रतिरोधी तत्व उत्पन्न हो जाते हैं विटामिन डी के रासायनिक संगठन और विशेषताएं

यह सफेद रंग का दावेदार पदार्थ है इसमें कोई गंध नहीं होती हैं

यह वसा तथा बसा मुल्कों में घुलनशील है पर पानी में घुलनशील हैं

एसिड पर टेंपरेचर ऑक्सीजन के प्रति स्थिर रहता है

यह कार्बन ऑक्सीजन से बना एक यौगिक है

यह दो प्रकार के होते हैं

विटामिन डी या कौन सी फिरौल

इसे और कुछ देर और और प्रोविटामिन भी कहते हैं विटामिन d2 फफूंदी तथा अमीर आदमी भी पाया जाता है पेड़ पौधों में भी विटामिन डी पाया जाता है अरगोस टेबल पर पराबैगनी किरणों के पढ़ने की क्रिया से कैल्सी फेरल बनता है

विटामिन डी या या कॉलेकैल्सिफेरॉल

इसे प्रोविटामिन भी कहा जाता है या जीव-जंतुओं की कोशिकाओं में पाया जाता है और यह मानव को कोलेस्ट्रोल से भी बनता है विटामिन d3 विटामिन d2 की अपेक्षा अधिक कार्य करता है और या स्थिर भी है यह मनुष्य की त्वचा के नीचे पाया जाता है जो सूर्य प्रकाश पड़ने पर पराबैंगनी किरणों में बदल जाता है या शरीर में विटामिन डी तथा विटामिन d3 का हाइड्रोसिलयलेशन होकर आती क्रियाशील तत्व कैल्सिट्रियोल बन जाता है और खून में कैल्शियम की कमी हो जाने पर हार्मोन पैरा थायराइड इस क्रिया को और तेज कर देता है अफजाल अफजाल सन खाने के द्वारा पाया गया विटामिन डी का शोषण छोटी आत की खिलाड़ियों के द्वारा होकर लसीका संस्थान में पहुंचता है और लसिका संस्थान के द्वारा या रत्नल गांव से होकर लीवर तथा शरीर के अन्य भागों में पहुंचता है अबॉर्शन के समय विटामिन डी कुछ थोड़े मात्रा में खराब हो जाता है खराब बदबूदार होने से विटामिन डी ज्यादा मात्रा में खराब हो जाता है विटामिन डी के अब्जॉर्प्शन विटामिन और नमक की जरूरत होती है अतः इन को प्रभावित करने वाले कारक विटामिन डी के अवशोषण को भी नुकसान करते हैं विटामिन डी का निष्कासन सिर्फ मल मूत्र द्वारा ही होता है विटामिन डी के कार्य निम्न बताएं

कैल्शियम और फास्फोरस के चयापचय होना

इससे कैल्शियम और फास्फोरस का छोटी आत में अफजाल करने की क्रिया बढ़ जाती है और वह उसे नियंत्रण में भी करता है यदि इसकी उपस्थित नहीं हो तो कैल्शियम व फास्फोरस मल मूत्र के द्वारा निकल जाते हैं इस कारण से हड्डियों पर गलत असर पड़ता है विटामिन डी के द्वारा गुर्दे में दोबारा अब्जॉर्प्शन करने की क्षमता बढ़ जाती है दांतों को मजबूती विटामिन डी तथा कैल्शयम के जमाव में सहायक होता है विटामिन डी का चरण का विरोध कर उन को मजबूत बनाता है खून में कैल्शियम फास्फोरस को नियंत्रित करता है और विटामिन डी के द्वारा भी किया जाता है विटामिन डी की कमी से खून में कैल्शियम तथा फास्फोरस की मात्रा बढ़ जाती है

पैरा थायराइड की क्रिया ग्रंथियों से निकलने वाले हार्मोन की मात्रा में विटामिन डी से कंट्रोल होकर कैल्शियम और फास्फोरस को हड्डियों से निकालकर खून में मिला देता है इसका प्रभाव गुर्दे पर नहीं पड़ता और मूत्र से अतिरिक्त फास्फोरस बाहर निकल जाता है हार्मोन के इस कार्य से खून में कैल्शियम तथा फास्फोरस की मात्रा समान करने में मदद मिलती है

प्रोटीन का निर्माण

विटामिन डी आंतों के प्रोटीन बनाने के कार्य में जुड़ा रहता है विटामिन डी की कमी से कैल्शियम को अब जॉब करने में कमी आ जाती है

हड्डियों का निर्माण

विटामिन डी के डीके उपस्थित में हमारी हड्डियों का निर्माण होता है या खाने में लिया जाता है कैल्शियम और फास्फोरस का अवशोषण विटामिन डी के मदद से किया जाता है यह शरीर के विकास में मजबूती प्रदान करने के लिए विटामिन डी जरूरी है विटामिन डी की कमी के प्रभाव इसकी कमी से खून में अल्कलाइन फास्फोरस इंजन की मात्रा बढ़ जाती है विटामिन डी की कमी बहुत समय तक बनी रहने पर कई प्रकार की बीमारियों का सामना करना पड़ता है जैसे

सूखा रोग

बच्चों में जिनकी आयु 6 से 16 माह तक के बच्चों में विटामिन डी की कमी से सूखा रोग हो जाता है इस रोग में विटामिन डी कैल्शियम फास्फोरस तीनों की कमी हो जाती है तभी सूखा रोग हो जाता है

स्कर्वी

जब इस कर्वी सूखा दोनों साथ-साथ होने के लक्षण हो जाते हैं तो गर्दों में भी असर डालता है या रिकेट्स गुर्दों में रोग होने संबंधी अतिरिक्त फास्फोरस का बहन पेशाब के बढ़ जाते हैं साथ में एल्ब्यूमिन की मात्रा अधिक हो जाती है गुर्दे अपना काम करना कम कर देते हैं

बाल रिकेट्स

यह 6 माह से 1 वर्ष तक के बच्चों में होने वाला टिकट चलाता है इसके कारण शरीर में कैल्शियम का अवशोषण नहीं हो पाता है बच्चे के खाने में कैल्शियम फास्फोरस विटामिन डी एवं सूर्य का प्रकाश ना मिलने के कारण हो जाता है

लक्षण

हड्डियां कमजोर हो जाती हैं प्रमुख रूप से टांगों की हड्डियों में शरीर का वजन नहीं उठा पाते जिससे लचक आ जाती है और टांगे कमजोर टेढ़ी हो जाते हैं

सिर की हड्डियां बेडौल हो जाती हैं और आगे पीछे की हड्डियां बाहर निकल आते हैं रोग बढ़ने पर रीड की हड्डी में असर पड़ता है और रीढ़ की हड्डी होने के कारण कुंवर सा निकल आता है जोड़ों में सूजन आ जाती है कलाई में दर्द रखने का आकार बदल जाता है सीरम में फास्फोरस का बढ़ना शुरू हो जाता है और फास्फोरस कम होने लगता है पेट फूल जाता है सीना बाहर को निकल आता है रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है मांस पेशी तथा दांतों का विकास पूरी तरह से नहीं हो पाता इस कारण से कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं

जैसे

टिटैनीऔर सूखा रोग

इसका समय पर उपचार ना किया जाए तो किडनी रोग के कारण जोड़ों में ऐठन होनी शुरू हो जाती है जिसके कारण रोगी बेहोश होने लगता है इसका कारण कैल्शियम फास्फोरस के चाय बचाव में असमानता आ जाती है विटामिन डी की कमी हो जाती है थायराइड ग्रंथि को खराबी हो जाती है और हाथ पैर में जोड़ों में दर्द होने लगता है

दंत क्षय

विटामिन डी की कमी के कारण दांतों की बनावट विकास में बहुत बड़ा असर पड़ता है और दांत निकलने में समय ज्यादा लगता है दांत स्वस्थ नहीं होते उनमें स्वर्ण जैसी समस्या का सामना करना पड़ता है हड्डियों में प्रभाव पड़ता है

हड्डियों में प्रभाव

एस्ट्रो मलेशिया विटामिन डी की कमी के कारण हो जाता है तथा इसे बड़ों की रिकेट्सिया भी कहा जाता है और शरीर में हड्डियों की प्रक्रिया प्रभावित हो जाती है यह स्थित गर्भावस्था और धात्री महिलाओं में भी देखने को ज्यादा मिलती है

विटामिन डी के अधिक होने के प्रभाव

विटामिन डी की ज्यादा मात्रा होने पर छह रोग गठिया जैसी बीमारी ठीक होने की संभावना होती है विटामिन डी की मात्रा अधिक होने पर बच्चों में विषय में लक्षण दिखाई देते हैं बच्चे कमजोर हो जाते हैं बड़ों में भी अधिक समय तक विटामिन डी लेने से विषैले लक्षण दिखाई देते हैं इसकी अधिकता से थायराइड हार्मोन की अधिकता से खून में कैल्शियम फास्फोरस की मात्रा बढ़ जाती है और पेशाब में कैल्शियम फास्फोरस निकलने लगता है या ज्यादा लगती है कैल्शियम हार्ट की रक्त वाहिनी या फेफड़ों और गुर्दों में एकत्र होने लगता है

लक्षण

सिर दर्द थकान जी मिचलाना वजन कम होना चिड़चिड़ापन दस्त गुस्सा आना गुर्दे खराब होना पथरी बनना बार बार प्यास लगना बार बार पेशाब आना शरीर की मांसपेशियां कमजोर होना कोमल तंतुओं में कैल्शियम का जमा होना मानसिक दुर्बलता उल्टी चक्कर आना आंख में आंखों में कमी आना आदि लक्षण हो जाते हैं

विटामिन डी किन चीजों से प्राप्त करते हैं

प्राणी खाने के पदार्थों से जैसे अंडा का पीला वाला हिस्सा लीवर और कुछ एक मछलियों में भी पाया जाता है खाने वाले पदार्थों में कोलेस्ट्रोल तथा क्रिस्टल भी पाया जाता है जो शरीर के विटामिन d3 और विटामिन टू में बदल जाता है सूर्य की पराबैंगनी किरणों में त्वचा के नीचे पाए जाने वाले साथ डिहाइड्रोकोलस्ट्रोल को विटामिन d2 में बदल देती है दूंगा और मिट्टी के घर में रूकावट होने लगती है

विटामिन ए(Vitamin A)

विटामिन विटामिन कार्बनिक तत्व होते हैं जो कि हमारे शरीर के लिए जरूरी होते हैं विटामिन हमारे निर्माण में बहुत मदद करते हैं हमारे शरीर के सभी क्रियाओं को पूरा करते हैं मदद करते हैं विटामिन शरीर के चयापचय क्रिया को पूरा करने में मदद करते हैं विटामिन शरीर के चयापचय क्रिया को पूरा करने में मदद करते हैं विटामिन की पर्याप्त मात्रा में नहीं बनते तो संश्लेषण नहीं होता इसलिए इनको खाने में शामिल करना होता है शरीर विटामिन नहीं बनाता हमको खाने में ही लेना होता है विटामिन की कमी से तमाम तरह के रोग हो जाते हैं इसलिए हमारे खाने में प्रोटीन का रोल बसा लवण साथ में विटामिन का होना बहुत जरूरी है

विटामिन हमारे लिए निम्न प्रकार से उपयोगी होते हैं

विटामिन युक्त खाना से व्यक्ति स्वस्थ और निरोगी रहता है विटामिन की कमी से बीमारियां घेरने लगती

विटामिन से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है

विटामिन की कमी से व्यक्ति दुर्बल हो जाता है

विटामिन की कमी से नींद नहीं आती है

विटामिन लेने से भूख बढ़ती है चुस्त-दुरुस्त रहते

विटामिन के नामकरण

विटामिन की की खोज सन 1912 में हुई इसका श्रेय पंख जो खोज की विटामिन के वैज्ञानिक हैं जिन्होंने खाने के पदार्थ में इस तत्व को नाम विटामिन का दिया और जैसे-जैसे अलग-अलग विटामिन की खोज हुई वैसे वैसे उनका रासायनिक संगठन हमको ज्ञात होता गया तथा इसको संज्ञा दी गई ए बी सी डी के नाम रसायनिक संगठन के अनुसार दिया गया विटामिन को रोक के अनुरूप काम करते देखा गया इसी तरह का उसे नाम भी दिया गया विटामिन की उपयोगिता को प्रभावित करने वाले कारक तमाम तरह के विटामिन खाने में इस तरह के पाए जाते हैं जिनका अभी शोषण नहीं होता जैसे अनाज में निकोटिन अम्ल पाए जाते हैं जो कि फाइटिंग के कारण निष्क्रिय होने के बाद में वसा में घुलनशील विटामिन पाचन के बाद ही अवशोषित होते हैं विटामिन खाने के पदार्थों में कमी खाने में विटामिन से मिलते जुलते एंटीविटामिन भी पाए जाते हैं विटामिन में विशेषण के साथ एंटीविटामिन खाने में एंजाइम की क्रिया को पूरा करते हैं इसी कारण विटामिन शरीर को नहीं मिल पाते एंटीविटामिन के अनिष्ट भी कहा जाता है जैसे एमिनो यूरिन एक्सपायरी डेट

प्रोविटामिन का मिलना का मिलना या पाया जाना

कई खानों के पदार्थ में विटामिन स्वयं के रूप में नहीं होते प्रोविटामिन के रूप में मिलते हैं जो किया होने पर विटामिन में बदल जाते हैं जैसे कैरोटीन का विटामिन ए में बदलना की ट्रॉफी इनका नाइसिन में बदलना है

आंतों में विटामिन का निर्माण होना

छोटी आत में पाए जाने वाले कुछ बैक्टीरिया विटामिन का निर्माण करते हैं जिनको हम विटामिन b1 b2 b12 के नाम से जानते हैं और निकोटीनिक एसिड की क्रिया कैसे विटामिनों की बहुत कम प्राप्ति होती है बीमारी के समय यह छोटी आत में इस तरह का कार्य करते हुए यह होते हुए देखा गया है खाने के अलग-अलग समूह होते हैं खाने के पदार्थ में सभी तरह के विटामिन पाए जाते हैं यदि हर व्यक्ति इसका नियमित और सही मात्रा से इस्तेमाल करता है तो उसे बाहर से या अतिरिक्त विटामिन लेने की जरूरत नहीं होती हैं विटामिन को मापने की इकाई शुरू में बसा में घुलने वाली विटामिन कामा इंटरनेशनल यूनिट से किया जाता था पानी में खुलने वाली विटामिन को मिलीग्राम से मापा जाता है लेकिन आजकल तो सभी विटामिनों को माइक्रो मिलीग्राम में मापा जाता है और 1 मिलीग्राम में 1000 मई को एग्जाम बराबर 40,000 इंटरनेशनल यूनिट और 1 माइक्रोग्राम में 440 इंटरनेशनल यूनिट होते हैं विटामिन को भागों में बांटना इसे दो भागों में बांटा गया

बसा में भूलने वाले विटामिन ए डी के

पानी में घुलने वाले विटामिन बी सी और पी

बसा में घुलने वाले विटामिन बसी ए घोल में घुलने मिल जा ते हैं

यह शरीर से निकलते नही बल्कि संग्रहीत होते रहते t

ज्यादा होने पर शरीर में जमा रहते हैं विटामिन की कमी का पता बहुत धीरे धीरे चलता है

इसमें कार्बन ऑक्सीजन और हाइड्रोजन के अंग पए जाते हैं

इनका अवशोषण लस्का में होता है

रोज के खाने में विटामिन को होना जरूरी नहीं है हमको हमारे शरीर में सब्जियों से मिल जाते हैं

विटामिन ए

विटामिन ए का प्रयोग चूहों में किया गया सन् 1913 में और उनकी ग्रोथ के लिए अंडे की जर्दी मक्खन में उपस्थित एक तत्व का नाम विटामिन ए दिया और यह भी बताया कि यह आंखों की बीमारी त्वचा रोग मक्खन और मछली के यकृत के इस्तेमाल से हो जाते हैं एक दूसरे वैज्ञानिक ने बताया कि पेड़ पौधों और सब्जियों में पाए जाने वाले विशेष तरह के केरोटिन शरीर में जाकर पाचन के बाद विटामिन में बदल जाते हैं इसे इसीलिए इसे विटामिन ए कहते हैं

खूबियां

यह एक पीला हल्के रंग रेशेदार योगिक जो कार्बन हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन में मिश्रण से बनता है कैरोटीन पौधों करो 10 पौधों में संश्लेषित गहरे लाल रंग का होता है और या तीन प्रकार के होते हैं

बसा में मैं भूलने वाला तथा पानी में नहीं भूलता

समान ताप में या खराब नहीं होता हवा की उपस्थित एवं सूर्य की रोशनी में ऑक्सीकरण होने के कारण काफी मात्रा में खराब हो जाता है

विटामिन ए प्राणियों के खाद्य पदार्थों में तथा कैरोटीन खाने के पदार्थों में पाये जाते है

विटामिन ए कितने प्रकार के होते हैं

विटामिन कई तरह के खाने में एक से अधिक तरह के पाए जाते हैं इसे विटामिन ए का मिश्रण कहा जाता हैं

या 4 तरह के होते हैं इनका कार्य भी अलग-अलग होते हैं

जैसे विटामिन रेटीनल

ये केवल प्राणी खाने के पदार्थों में पाए जाते हैं जैसे दूध मक्खन लीवर गुर्दे में पाया जाता है और हरी पीली सब्जियों में भी पाया जाता है गाजर पपीता पालक इतिहास में beta-carotene के शक्ल में पाया जाता है विटामिन ए तथा कैरोटीन में समानता का कोई असर नहीं होता है

विटामिन ए टू

ताजे पानी में पाए जाने वाली मछलियों के लिवर में पाया जाता है

विटामिन ए एल्डिहाइड

या केवल आंखों के रेटिना के राइट कौन में पाया जाता है या कम रोशनी में देखने के काम में उपयोग किया जाता है

विटामिन ए वन एसिड

या खारे पानी में पाए जाने वाली मछलियों में मैं पाया जाता है शरीर में बनता है और शरीर के विकास के लिए बहुत जरूरी होता है

रक्त में मात्रा

हमारे रक्त में विटामिन ए की मात्रा

हमारे दांत में विटामिन ए की मात्रा 1930 इंटरनेशनल यूनिट प्रति 100 मिलीलीटर रहती है और या गर्भवती महिला आखिरी 3 महीने में 30 प्लस कम हो जाती है और नवजात शिशु में यदि सूखा संक्रमण हो जाता है तो या और कम हो जाती है

रखरखाव

लीवर में 90 परसेंट विटामिन ए संग्रहित होता है और यह 3 माह तक के लिए हो जाती है और कुछ मात्रा में विटामिन ए गुर्दे फेफड़े और बसी ऊतकों में भी रहती है एक जवान व्यक्ति के लिवर में लगभग एक लाख यूनिट होती है और यह बढ़ती रहती है

आंखों की सामान रोशनी

आंखों की अच्छी रोशनी बरकरार रखने के लिए विटामिन ए बहुत ही जरूरी होता है कम रोशनी में भी आपके देखने की ताकत रहती है रेटिना में दो तरह की कोशिकाएं होती हैं जो रंग प्रदान करने का कार्य करती हैं इनमें आपसे नामक प्रोटीन होता है

कोमल त्वचा

विटामिन ए रेट इन एसिड एवं म्यूकस राव में उत्साहित करता है मैं उससे मुंह छोटी आंतों की अंदर आंख स्वसन आम यूरियन यूरिन मार्ग आदि जगहों की झिल्ली में कमी रहती है जिससे त्वचा कोमल चमकदार बनी रहती है और विटामिन ए के कारण बैक्टीरिया की रहने की संभावना नहीं होती

विटामिन ए एपीठेलियल कोशिकाओं के स्वस्थ कोशिकाओं को स्वस्थ बनाए रखते हैं

विटामिन ए एपिथेलियल कोशिकाओं को मजबूत बनाने में मदद करते हैं मानव शरीर में सभी भी थे रियल कोशिकाओं की एक परत बनी रह

जैसे

गला ना त्वचा श्वास नली पाचन अंग एवं आंतरिक कोमलता रहने में विटामिन ए का महत्वपूर्ण रोल होता है

हड्डियों एवं दांतो की वृद्धि तथा मजबूती

विटामिन ए दातों हड्डियों के बढ़ने में एवं मजबूत बनाने में मदद करते हैं बाल्यावस्था में खाने में विटामिन ए युक्त खाना खाने से मजबूती रहती है और मसूड़ों की भी मजबूती रहती है

नर्वस सिस्टम

नर्वस सिस्टम के लिए विटामिन ए बहुत जरूरी है विटामिन ए की कमी से नर्वस सिस्टम खराब होने लगता है

विटामिन ए प्रजनन अंगों को स्वस्थ रखता है

विटामिन ए शरीर में पर्याप्त होने पर प्रजनन अंग स्वस्थ रहते हैं और यौन हार्मोन का रखरखाव बराबर बना रहता है विटामिन ए समान प्रजनन के लिए मानव को जरूरी होता है इसकी कमी से स्थिति स्त्री परुष दोनों ही प्रजनन क्षमता नहीं होती और यह प्रोटीन के लिए भी जरूरी है विटामिन ए के कारण प्रोटीन की उचित मात्रा शरीर में क्रियाशीलता को भी प्रभावित कर

ब्लू को प्रोटीन में भी विटामिन ए मुख्य भूमिका निभाती है तथा इसकी कमी से पथरी लीवर में में में हो जाते हैं

विटामिन ए की कमी से क्या-क प्रभाव

आपके म्यूकस बनना बंद हो जाता है लैसमार्क झिल्ली काम नहीं करती लार ग्रंथियां आंख से आंसू ग्रंथियों स्वसन नालयों नदियों की मुलायम मुलायम का समाप्त हो जाती है और इन अंगों की कार्य करने की शक्ति में कमी आ जाती है और इन अंगों का विकास बंद हो जाता है

विटामिन ए की कमी से पुरुषों की ज्ञानेंद्रियों पर प्रभाव पड़ता है तथा शुक्राणु बनने कम हो जाते हैं

विटामिन ए की कमी से गुर्दों में पथरी बनने लगती है और पेशाब आने में परेशानी होती है

विटामिन ए की कमी से दस्त आने लगते हैं तथा बहरेपन होने की संभावना बढ़ती है

विटामिन ए की कमी से रतौंधी रोग हो जाता है जिससे कार्निया सूख जाती है और पारदर्शिता समाप्त हो जाती है जिसे सिरोसिस का नियम भी कहते हैं

विटामिन ए की कमी से आंख के अंदरूनी भाग की झिल्ली की पर सफेद हो जाती है भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जिसके कारण कार्निया की में दाने निकलने लगते हैं और पस पड़ जाता है और आपस में चिपकने लगता है हम इसे बीटा धब्बों के नाम से जानते हैं

विटामिन ए की अधिकता के का प्रभाव होते हैं

विटामिन ए की अधिकता शरीर पर बहुत ही हानिकारक असर पड़ता है वह 5000 से 2,000 आईवी प्रति किलोग्राम शरीर के वजन से 6 से 15 माह तक रोज लेता है तो उसे विटामिन ए के अधिक होने के लक्षण नजर आने लगते हैं जैसे भूख न लगना सिर में दर्द होना गुस्सा चिड़चिड़ापन खुरदरी त्वचा खुजली पैरों की हड्डियों में सूजन आना लीवर और तिल्ली का बढ़ना खून से सिरम से विटामिन ए की मात्रा का बढ़ना सांस लेने में तकलीफ होना बालों का झड़ना जोड़ों में दर्द होना फोटो में छाले आदि हो जाते हैं

विटामिन ए पकाने में तापमान का क्या प्रभा

विटामिन के पदार्थ पकाने में खराब नहीं होते मक्खन तेल में 100 से ऊपर टॉप में खराब होते हैं और फलों में विटामिन सूर्य के प्रकाश से खराब हो जाते हैं और डिब्बे में कैरोटीन सही बना रहता है मछली के आयल को बोतलों में खुला रखने पर विटामिन ए 3 ऑल खराब हो जाता है तथा उसमें उसे वसायुक्त बदबू आने लगती है उसका विटामिन ए खराब हो जाता है

विटामिन ए कहां-कहां से पा सकते हैं

विटामिन ए मछली के लिवर में बहुत अधिक मात्रा में होता है पर इसके तेल खाने के पदार्थ पकाने में इस्तेमाल नहीं किया जाता विटामिन ए अच्छी श्रेणी के साधन मक्खन हरा धनिया अरबी के पत्ते आम पालक गाजर पपीता आदमी अधिक मात्रा में विटामिन मिलता है दूध और मक्खन में विटामिन ए रेटीना में पाया जाता है रोजाना कितना लेना चाहिए विटामिन ए आयु के हिसाब से लेना चाहिए व्यक्ति की अवस्था क्या है उसी हिसाब से लेना चाहिए वैसे सामान्यता समान व्यक्ति को 750 माइक्रोग्राम विटामिन ए या 3000 माइक्रोग्राम कैरोटीन रोजाना लेना चाहिए थैंक यू

खाना (आहार)की अवधारणा तथा वर्गी कारण

हवा और पानी के बाद मानव जाति को 3 बुनियादी जरूर दें होती है रोटी कपड़ा और मकान जिसमें खाना इंसान की बड़ी जरूरत है खाने से शरीर को ऊर्जा पौष्टिक तत्व और उष्णता मिलती है जिससे शरीर की तमाम तरह की शारीरिक मानसिक क्रिया संपन्न होती है शरीर का विकास वृद्धि और सेल में हो रही टूट-फूट की मरम्मत रोगों से बचाना प्रजनन एवं शरीर में हो रहे कई तरह की प्रक्रियाएं चालू रखने के लिए खाना बहुत ही jaruri hota जरूरी सभी तरह के पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में होते हैं यह पोषक तत्व जैसे प्रोटीन अमीनो एसिड कार्बोहाइड्रेट वसा तथा बसी एसिड विटामिन खनिज लवण और पानी हमारे खाने में वे सभी पोषक तत्व पूर्ण रूप से होना चाहिए जो हमारे शरीर की जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी हैं कुछ खाने ऐसे होते हैं जिनमें सभी पोषक तत्व होते हैं और वह शरीर के सभी कार्यों को पूरा करते हैं जबकि कुछ खाने के वस्तुओं केवल एक या दो पोषक तत्व उपस्थित होते हैं जैसे दूध एवं शुगर दूध में सभी पोषक तत्व पाए जाते हैं इसलिए दूध को पूर्ण खाना भी कह जाता है तेल में केवल बसा होता है और शुगर में कार्बोहाइड्रेट होता है इसलिए दोनों ही अपूर्ण खाद्य पदार्थ है जो हमारे शरीर को ताकत प्रदान करते हैं हमें अपने खाने के पोषण के मौलिक सिद्धांतों की पूर्ण जानकारी होनी चाहिए ताकि हम उसे अपने रोज के खाने में शामिल करें और अपने खाने को स्वाद के साथ ही संतुलित और उसमें सभी तरह के पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में हो ज हमारे शरीर की जरूरतों को पूरा करें खाना हमारे कल्चर को दर्शाता है हर हर एक समाज या देश प्रदेश की खानपान की आदतें अलग अलग होते हैं कुछ लोगों में मछली अंडा मांस को अच्छा मानते हैं तो दूसरे समाज के लोग इसे वर्जित करते हैं इसी तरह से एक ही परिवार में रहने वाले लोगों की पसंद नापसंद अलग-अलग होती है थैंक यू

किसी प्रदेश के खान-पान में वहां के वातावरण बहुत बड़ा असर पड़ता है जैसे कि जो लोग समुद्र के किनारे रहते हैं तो उनका खाना मछली तथा अन्य समुद्री चीजों से किया जाता है उसी जगह पर मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का अनाज मुख्य खाना होता है और इन सभी आदतों का एवं पसंद नापसंद का आधार प्रदेश या देश का मौसम भूमि की उपलब्धता पर निर्भर करता है हर एक तरह के पदार्थ हर मौसम में नहीं होते मौसम के हिसाब से उगाए जाते हैं उस मौसम में उनकी अधिकता रहती है और हर खाने का एक बहुत जरूरी पहलू यह भी है कि जिस प्रकार का मौसम होता है उसी प्रकार के खाने के पदार्थ वहां पर उगाए जाते हैं जहां भी उठता है वह वहां के लोगों को अच्छा लगता है और उनके लिए पौष्टिक भी होता है मौसमी होने के कारण आसानी से मिल भी जाते हैं और उनके पौष्टिक तत्व भी बरकरार रहते हैं और अधिक उपलब्धता होने पर उनका संरक्षण कर सकते हैं और इन संरक्षित खाने की आप आगे की उपयोग आगे भी उपयोग कर सकते हैं जब इन का मौसम नहीं हो होता वर्तमान समय में बढ़ती आबादी के कारण यह जरूरी है कि उन खाने की सामग्री की उपलब्धता का लाभ उठाया जा सके खाने को हम कई भागों में बांट सकते हैं

जल्दी खराब होने वाले पदार्थ

ये ऐसी खाने की चीजें होती हैं जो कि कुछ दिनों तक रखने पर उनका रंग स्वाद सुगंध आज में बदलाव आ जाता है इनको रखने पर तापक्रम नमी रखने का स्थान पर होता है कि ऐसी जगह पर रखा गया बहुत सारे खाने वाले पदार्थ करने वाले होते हैं जैसे मांस मछली दूध आदि इन सभी को सुरक्षित रखने के लिए रेफ्रिजरेटर का इस्तेमाल करते हैं बड़े पैमाने में रखने के लिए कोल्ड स्टोर का भी इस्तेमाल होता है

कुछ कुछ समय पर खराब होने वाले पदापदार्थ

ये वह खाने की चीजें होती हैं जो कुछ समय से लेकर कुछ महीनों तक रखी जा सकती हैं और उनके स्वाद रंगरूप एवं खुशबू में कोई खास असर नहीं पड़ता है इस तरह के खाने वाले पदार्थ को कुछ समय तक रोककर अपने इस्तेमाल कर सकते हैं जैसे नमकीन चिप्स तेल युक्त चीज मूंगफली चने भुने हुए सत्तू बेसन आलू प्याज आटा नीबू संतरा नारंगी सूजी मैदा पोहा दलिया सुखी मिठाई आज आप सब कुछ समय तक रोककर इस्तेमाल कर सकते हैं खाने के पदार्थ को 1 वर्ष से भी ज्यादा इस्तेमाल किए जा सकते हैं ऐसे खाने वाले पदार्थ जो कि 1 वर्ष या 6 माह तक इस्तेमाल किए जाते हैं जिनके रखरखाव को सही ढंग से करने पर आप सालों साल खराब नहीं होते नहीं वह सकते हैं ना ही उनका रंग खराब होता है ना ही उनको स्वाद में बदलाव होता है जैसे अनाज दालें मसाले अचार आदि अनाजों को बचाने के लिए उसे नमी रहित स्थान में रखा जाता है और आचार जैम जैली शरबत को सुरक्षित रखने के लिए कुछ पदार्थ का इस्तेमाल करते हैं जैसे पोटैशियम मेटाबाईसल्फाइट सोडियम बेंजोएट एंड एसिटिक एसिड का प्रयोग किया जाता है नमक हल्दी तेल चीनी मिर्च आदि प्राकृतिक पदार्थ होते हैं इनके उपयोग से उपचार खराब नहीं होता है और कई वर्षों तक इस्तेमाल किया जाता है