विटामिन डी(Vitamin D)

विटामिन डी का इतिहास

बहुत समय पहले या प्रथम युद्ध के समय एक वैज्ञानिक ने कुछ बच्चों को मछली का तेल देकर उनका रिकेट्सिया रोग से बचाव किया था या किस खाने की कमी से होता है इसे जानने के अनेक प्रकार के प्रयोग किए गए कुत्तों में प्रयोग किया गया तो ज्ञात हुआ कि बसा में घुलने वाले कई पदार्थ हैं जिसमें कुत्तों का हड्डियों का कंकाल प्रभावित होता है सन 1922 में वैज्ञानिक मैकुलम ने पाया कि यह अधिकार लिवर आयल का ऑक्सीकरण करके विटामिन ए को अलग करके यह देखा कि उसमें कोई तत्व है जो कि रिकेट्सिया को ठीक कर रहा है तो उस एरिया का नाम दिया गया और तमाम प्रयोगों द्वारा या अभी जाना गया कि स्ट्रॉल तेलों धूप में रखने से उनमें विकेट प्रतिरोधी तत्व उत्पन्न हो जाते हैं विटामिन डी के रासायनिक संगठन और विशेषताएं

यह सफेद रंग का दावेदार पदार्थ है इसमें कोई गंध नहीं होती हैं

यह वसा तथा बसा मुल्कों में घुलनशील है पर पानी में घुलनशील हैं

एसिड पर टेंपरेचर ऑक्सीजन के प्रति स्थिर रहता है

यह कार्बन ऑक्सीजन से बना एक यौगिक है

यह दो प्रकार के होते हैं

विटामिन डी या कौन सी फिरौल

इसे और कुछ देर और और प्रोविटामिन भी कहते हैं विटामिन d2 फफूंदी तथा अमीर आदमी भी पाया जाता है पेड़ पौधों में भी विटामिन डी पाया जाता है अरगोस टेबल पर पराबैगनी किरणों के पढ़ने की क्रिया से कैल्सी फेरल बनता है

विटामिन डी या या कॉलेकैल्सिफेरॉल

इसे प्रोविटामिन भी कहा जाता है या जीव-जंतुओं की कोशिकाओं में पाया जाता है और यह मानव को कोलेस्ट्रोल से भी बनता है विटामिन d3 विटामिन d2 की अपेक्षा अधिक कार्य करता है और या स्थिर भी है यह मनुष्य की त्वचा के नीचे पाया जाता है जो सूर्य प्रकाश पड़ने पर पराबैंगनी किरणों में बदल जाता है या शरीर में विटामिन डी तथा विटामिन d3 का हाइड्रोसिलयलेशन होकर आती क्रियाशील तत्व कैल्सिट्रियोल बन जाता है और खून में कैल्शियम की कमी हो जाने पर हार्मोन पैरा थायराइड इस क्रिया को और तेज कर देता है अफजाल अफजाल सन खाने के द्वारा पाया गया विटामिन डी का शोषण छोटी आत की खिलाड़ियों के द्वारा होकर लसीका संस्थान में पहुंचता है और लसिका संस्थान के द्वारा या रत्नल गांव से होकर लीवर तथा शरीर के अन्य भागों में पहुंचता है अबॉर्शन के समय विटामिन डी कुछ थोड़े मात्रा में खराब हो जाता है खराब बदबूदार होने से विटामिन डी ज्यादा मात्रा में खराब हो जाता है विटामिन डी के अब्जॉर्प्शन विटामिन और नमक की जरूरत होती है अतः इन को प्रभावित करने वाले कारक विटामिन डी के अवशोषण को भी नुकसान करते हैं विटामिन डी का निष्कासन सिर्फ मल मूत्र द्वारा ही होता है विटामिन डी के कार्य निम्न बताएं

कैल्शियम और फास्फोरस के चयापचय होना

इससे कैल्शियम और फास्फोरस का छोटी आत में अफजाल करने की क्रिया बढ़ जाती है और वह उसे नियंत्रण में भी करता है यदि इसकी उपस्थित नहीं हो तो कैल्शियम व फास्फोरस मल मूत्र के द्वारा निकल जाते हैं इस कारण से हड्डियों पर गलत असर पड़ता है विटामिन डी के द्वारा गुर्दे में दोबारा अब्जॉर्प्शन करने की क्षमता बढ़ जाती है दांतों को मजबूती विटामिन डी तथा कैल्शयम के जमाव में सहायक होता है विटामिन डी का चरण का विरोध कर उन को मजबूत बनाता है खून में कैल्शियम फास्फोरस को नियंत्रित करता है और विटामिन डी के द्वारा भी किया जाता है विटामिन डी की कमी से खून में कैल्शियम तथा फास्फोरस की मात्रा बढ़ जाती है

पैरा थायराइड की क्रिया ग्रंथियों से निकलने वाले हार्मोन की मात्रा में विटामिन डी से कंट्रोल होकर कैल्शियम और फास्फोरस को हड्डियों से निकालकर खून में मिला देता है इसका प्रभाव गुर्दे पर नहीं पड़ता और मूत्र से अतिरिक्त फास्फोरस बाहर निकल जाता है हार्मोन के इस कार्य से खून में कैल्शियम तथा फास्फोरस की मात्रा समान करने में मदद मिलती है

प्रोटीन का निर्माण

विटामिन डी आंतों के प्रोटीन बनाने के कार्य में जुड़ा रहता है विटामिन डी की कमी से कैल्शियम को अब जॉब करने में कमी आ जाती है

हड्डियों का निर्माण

विटामिन डी के डीके उपस्थित में हमारी हड्डियों का निर्माण होता है या खाने में लिया जाता है कैल्शियम और फास्फोरस का अवशोषण विटामिन डी के मदद से किया जाता है यह शरीर के विकास में मजबूती प्रदान करने के लिए विटामिन डी जरूरी है विटामिन डी की कमी के प्रभाव इसकी कमी से खून में अल्कलाइन फास्फोरस इंजन की मात्रा बढ़ जाती है विटामिन डी की कमी बहुत समय तक बनी रहने पर कई प्रकार की बीमारियों का सामना करना पड़ता है जैसे

सूखा रोग

बच्चों में जिनकी आयु 6 से 16 माह तक के बच्चों में विटामिन डी की कमी से सूखा रोग हो जाता है इस रोग में विटामिन डी कैल्शियम फास्फोरस तीनों की कमी हो जाती है तभी सूखा रोग हो जाता है

स्कर्वी

जब इस कर्वी सूखा दोनों साथ-साथ होने के लक्षण हो जाते हैं तो गर्दों में भी असर डालता है या रिकेट्स गुर्दों में रोग होने संबंधी अतिरिक्त फास्फोरस का बहन पेशाब के बढ़ जाते हैं साथ में एल्ब्यूमिन की मात्रा अधिक हो जाती है गुर्दे अपना काम करना कम कर देते हैं

बाल रिकेट्स

यह 6 माह से 1 वर्ष तक के बच्चों में होने वाला टिकट चलाता है इसके कारण शरीर में कैल्शियम का अवशोषण नहीं हो पाता है बच्चे के खाने में कैल्शियम फास्फोरस विटामिन डी एवं सूर्य का प्रकाश ना मिलने के कारण हो जाता है

लक्षण

हड्डियां कमजोर हो जाती हैं प्रमुख रूप से टांगों की हड्डियों में शरीर का वजन नहीं उठा पाते जिससे लचक आ जाती है और टांगे कमजोर टेढ़ी हो जाते हैं

सिर की हड्डियां बेडौल हो जाती हैं और आगे पीछे की हड्डियां बाहर निकल आते हैं रोग बढ़ने पर रीड की हड्डी में असर पड़ता है और रीढ़ की हड्डी होने के कारण कुंवर सा निकल आता है जोड़ों में सूजन आ जाती है कलाई में दर्द रखने का आकार बदल जाता है सीरम में फास्फोरस का बढ़ना शुरू हो जाता है और फास्फोरस कम होने लगता है पेट फूल जाता है सीना बाहर को निकल आता है रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है मांस पेशी तथा दांतों का विकास पूरी तरह से नहीं हो पाता इस कारण से कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं

जैसे

टिटैनीऔर सूखा रोग

इसका समय पर उपचार ना किया जाए तो किडनी रोग के कारण जोड़ों में ऐठन होनी शुरू हो जाती है जिसके कारण रोगी बेहोश होने लगता है इसका कारण कैल्शियम फास्फोरस के चाय बचाव में असमानता आ जाती है विटामिन डी की कमी हो जाती है थायराइड ग्रंथि को खराबी हो जाती है और हाथ पैर में जोड़ों में दर्द होने लगता है

दंत क्षय

विटामिन डी की कमी के कारण दांतों की बनावट विकास में बहुत बड़ा असर पड़ता है और दांत निकलने में समय ज्यादा लगता है दांत स्वस्थ नहीं होते उनमें स्वर्ण जैसी समस्या का सामना करना पड़ता है हड्डियों में प्रभाव पड़ता है

हड्डियों में प्रभाव

एस्ट्रो मलेशिया विटामिन डी की कमी के कारण हो जाता है तथा इसे बड़ों की रिकेट्सिया भी कहा जाता है और शरीर में हड्डियों की प्रक्रिया प्रभावित हो जाती है यह स्थित गर्भावस्था और धात्री महिलाओं में भी देखने को ज्यादा मिलती है

विटामिन डी के अधिक होने के प्रभाव

विटामिन डी की ज्यादा मात्रा होने पर छह रोग गठिया जैसी बीमारी ठीक होने की संभावना होती है विटामिन डी की मात्रा अधिक होने पर बच्चों में विषय में लक्षण दिखाई देते हैं बच्चे कमजोर हो जाते हैं बड़ों में भी अधिक समय तक विटामिन डी लेने से विषैले लक्षण दिखाई देते हैं इसकी अधिकता से थायराइड हार्मोन की अधिकता से खून में कैल्शियम फास्फोरस की मात्रा बढ़ जाती है और पेशाब में कैल्शियम फास्फोरस निकलने लगता है या ज्यादा लगती है कैल्शियम हार्ट की रक्त वाहिनी या फेफड़ों और गुर्दों में एकत्र होने लगता है

लक्षण

सिर दर्द थकान जी मिचलाना वजन कम होना चिड़चिड़ापन दस्त गुस्सा आना गुर्दे खराब होना पथरी बनना बार बार प्यास लगना बार बार पेशाब आना शरीर की मांसपेशियां कमजोर होना कोमल तंतुओं में कैल्शियम का जमा होना मानसिक दुर्बलता उल्टी चक्कर आना आंख में आंखों में कमी आना आदि लक्षण हो जाते हैं

विटामिन डी किन चीजों से प्राप्त करते हैं

प्राणी खाने के पदार्थों से जैसे अंडा का पीला वाला हिस्सा लीवर और कुछ एक मछलियों में भी पाया जाता है खाने वाले पदार्थों में कोलेस्ट्रोल तथा क्रिस्टल भी पाया जाता है जो शरीर के विटामिन d3 और विटामिन टू में बदल जाता है सूर्य की पराबैंगनी किरणों में त्वचा के नीचे पाए जाने वाले साथ डिहाइड्रोकोलस्ट्रोल को विटामिन d2 में बदल देती है दूंगा और मिट्टी के घर में रूकावट होने लगती है

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